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विराम चिह्न और संशोधन

 विराम चिह्न और संशोधन  हिंदी भाषा में केवल पूर्ण विराम(।) इसका स्वयं अपना है ।शेष विराम चिह्न  संस्कृत और अंग्रेजी से उद्धृत किए गए हैं ।अब विराम चिह्नों का का प्रयोग बढ़ गया है इस कारण इसके विषय में पूर्ण जानकारी होना अति आवश्यक है ।विराम चिन्ह का प्रयोग या उनकी विषय में विस्तृत जानकारी आपको इस आर्टिकल में दी जा रही है। वैसे तो विराम चिह्नों की जानकारी पूर्व के लेख में दी जा चुकी है इसमें उसका विस्तार प्रदान करते हुए विराम चिन्हों का परिचय एवं सभी प्रकार के लिखित कार्यों के संशोधन के विशेष में जानकारी दी जा रही है। हिंदी में विराम चिह्नों का प्रयोग- हिंदी भाषा में आरंभ से ही पद्य स्वरूप का बोलबाला रहा है जिसमें विराम चिह्नों को प्रयोग सीमित रहा है । डैश (–), प्रश्नवाचक(?) ,संबोधन(! ), संयोजक चिह्न(–), कोष्ठक का चिह्न ( () ), बराबर का चिह्न (=) आदि का प्रयोग अब हिंदी में किया जा रहा है । इन संकेतों को संस्कृत भाषा से लिया गया है । आधुनिक काल में मिशनरियों के अंग्रेजी भाषा के प्रभाव के कारण इस भाषा के विराम चिह्न भी हिंदी भाषा में मिल गए हैं । जैसे – अ...

विराम चिह्नों का ज्ञान एवं प्रयोग

 विराम चिह्नों का ज्ञान एवं प्रयोग

हिन्दी भाषा में विराम चिह्नों का ज्ञान अत्यन्त महत्वपूर्ण है। लिखित वाक्यों के भावों एवं विचारों को स्पष्ट रूप से समझने के लिये वाक्यों में जिन चिह्नों का प्रयोग किया जाता है, उन्हें विराम चिह्न कहते हैं ।

कामता प्रसाद गुरू के अनुसार"शब्दों तथा वाक्यों का परस्पर संबंध बताने तथा किसी बात को भिन्न-भिन्न भागों में बाँटने तथा यथास्थान रुकने के लिए लेखन में जिन चिह्नों का प्रयोग किया जाता है, उन्हें विराम चिह्न कहते हैं।"

विराम का सामान्य अर्थ है  - रुकना या ठहराव । लेखक लिखते समय अपने भावों और विचारों को सुगम और बोधगम्य बनाने के लिए विराम चिन्ह का प्रयोग करता है। इससे वाक्य रचना और भाव अभिव्यक्ति में स्पष्टता जाती है।

विराम चिह्न का महत्व- विराम चिन्हों का महत्व समझने के लिए नीचे लिखे वाक्यों का उद्धरण ले सकते हैं

           रोको मत जाने दो

ऊपर लिखे गए वाक्य में स्पष्ट नहीं है कि आदेश जाने के लिए है अथवा नहीं। इस वाक्य में विराम चिन्ह का महत्व देखिए-

            रोको, मत जाने दो

            रोको मत, जाने दो

ऊपर लिखे गए वाक्य में अल्पविराम(,) अलग-अलग लगने से पहले वाक्य में रुकने का आदेश है जबकि दूसरे वाक्य मेंअल्पविराम(,) का स्थान बदल कर अगले शब्द पर लग जाने के कारण जाने का आदेश है।

जिस प्रकार बोलने में, प्रश्न करते समय, आदेश देते समय, संबोधित करते समय, विस्मय प्रकट करते समय अपनी वाणी में उतार-चढ़ाव, बल, अनुतान, उच्च या मन्द स्वर का सहारा लेते हैं, उसी प्रकार लेखन में अपने भाव प्रकट के लिए विराम चिह्नों का प्रयोग करते हैं।

हिंदी में प्रचलित प्रमुख विराम चिन्ह निम्नलिखित हैं-

पूर्ण विराम                                           (।)

अल्प विराम                                          (,)

अर्द्ध विराम                                           (;)

प्रश्न सूचक                                            (?)

विस्मयादिबोधक या संबोधन सूचक          (!)

निर्देशक(डैश)                                       (–)

योजक                                                 (-)

अवतरण या उद्धरण चिह्न              ("------")

कोष्ठक                                                 ( )

विवरण चिह्न                                         (:-)

हंस पद                                                (्र) 

                                     

इनमें से कुछ विराम चिह्न वाक्य के अंत में लगते हैं; जैसे- पूर्ण विराम, प्रश्न सूचक, संबोधन या विस्मयादिबोधक तथा कुछ वाक्य के बीच में, जैसे- अल्प विराम अर्द्धविराम आदि।


१ - पूर्ण विराम(।)- वाक्य चाहे लंबा हो, छोटा हो, सरल हो, संयुक्त हो या मिश्र हो, उसके अंत में पूर्ण विराम का ही प्रयोग किया जाता है जैसे-

जाओ ।           

वह अच्छा लड़का है । 

उसने कहा कि डेविड कल आएगा।

सोहन आया और तुम चले गए ।


२ - अल्प विराम(,)- अल्प विराम वाक्य के बीच में लगता है । इसका प्रयोग मुख्य रूप से निम्नलिखित स्थानों पर किया जाता है ।

(1) एक ही प्रकार के कई शब्दों का प्रयोग होने पर प्रत्येक शब्द के बाद अल्प विराम लगाया जाता है, लेकिन अंतिम शब्द के पहले" और" शब्द का प्रयोग होता है; जैसे-

" राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न राजा दशरथ के चार पुत्र थे ।"


(2) एक ही प्रकार के कई पदबंधों या उपवाक्यों का एक वाक्य में प्रयोग होने पर प्रत्येक के अंत में अल्प विराम लगाया जाता है, पर अंतिम पदबंध के उपवाक्य के पहले'और' का प्रयोग किया जाता है; जैसे-

" जब हम पढ़ते हैं, सोचते हैं विचार करते हैं और मनन करते हैं तभी हमारा ज्ञान बढ़ता है ।"


(3) वाक्य का आरंभ में यदि 'हाँ ' अथवा 'नहीं' से हो तो इन शब्दों के तुरंत बाद अल्प विराम लगता है; जैसे-

" नहीं, तुम खेलने नहीं जाओगे ।"


(4) कभी-कभी संबोधन सूचक शब्द के बाद विकल्प में अल्प विराम लगाया जाता है; जैसे- 

 मोहन, तुम यह पुस्तक पढ़ो ।

(5) जब संज्ञा उपवाक्य मुख्य उपवाक्य से किसी समुच्चय बोधक द्वारा नहीं जोड़ा जाता है; जैसे- "राम ने कहा, मैं इस समारोह के समापन की घोषणा करता हूं ।"

(6) उद्धरण चिह्म से पूर्व; जैसे-" साथियों! मैंने समाज -सेवा का व्रत ले लिया है ।"


(३ )अर्द्ध विराम(;)-

अर्द्ध विराम का प्रयोग अल्प विराम की अपेक्षा अधिक समय तक ठहरने के लिए करते हैं । इसका प्रयोग अल्प विराम एवं पूर्ण विराम की तुलना में कम होता है । प्राय: लोग इसके स्थान पर अल्प विराम का ही प्रयोग कर देते हैं । इसका प्रयोग निम्नलिखित स्थानों पर किया जाता है ।


(1) किसी नियम के बाद आने वाले उदाहरण सूचक' जैसे' शब्द के पूर्व । उदाहरण के लिए' स्त्रियों' के नामों के साथ प्रायः 'देवी' शब्द आता है; जैसे-" गायत्री देवी, शीला देवी आदि ।"


(2 ) संयुक्त वाक्य के मुख्य या प्रधान उपवाक्य में परस्पर संबंध नहीं रहता तो उन्हें अलग करने के लिए; जैसे-

" आज हम जिसे मित्र समझते हैं, कल वही हमारा सत्र हो सकता है; आज जिसे प्यार करते हैं, कल उससे घृणा कर सकते हैं ।"

(3) उन कई मिश्रित उपवाक्य के बीच में जो एक ही प्रधान उपवाक्य पर आश्रित होते हैं; जैसे-

" जब तक शिक्षक यह नहीं जानता कि बालक का शारीरिक स्वास्थ्य कैसा है, उसकी बौद्धिक योग्यता कैसी है, उसकी अभिरुचियां क्या हैं; उसकी पारिवारिक स्थिति कैसी है; तब तक वह उसके शिक्षण में सफल नहीं हो सकता ।"

(४) प्रश्न वाचक चिह्न (?)- प्रश्नवाचक चिह्न लिखित स्थितियों में वाक्य के अंत में प्रयुक्त होता है--

(1) प्रश्नवाचक वाक्यों के अंत में प्रश्न वाचक चिह्न (?) का प्रयोग होता है; जैसे-

तुम किस विद्यालय में पढ़ते हो ?

तुम किसके साथ स्कूल जाते हो ?

तुम हमारे लिए बाजार से क्या लाओगे ?

(2) यदि एक ही वाक्य में कई प्रश्नवाचक वाक्य हों और वह एक ही प्रधान उपवाक्य पर निर्भर हूं तो पूरे वाक्य के अंत में प्रश्न सूचक या प्रश्न वाचक चिह्न (?) लगाया जाता है और बीच के प्रत्येक उपवाक्य के अंत में (,) चिह्न लगाया जाता है; जैसे-

मैं किसके साथ रहता हूं, मैं कहां जाता हूं, मैं क्या करता हूं, मैं क्या खाता हूं, मैं क्या पीता हूं, इससे तुम्हें क्या मतलब है ?

(५ ) विस्मयादिबोधक या संबोधन सूचक(!)- विस्मयादिबोधक या संबोधन सूचक चिह्न वाक्य के अंत में प्रयोग होता है ।

(1) हर्ष, विषाद, घृणा, आश्चर्य, आज्ञा,भय आदि मनो वेग सूचक शब्दों, पदबंधों, उपवाक्य तथा वाक्यों के अंत में जैसे-

कैसी सुंदर छटा है!?

उफ! कितनी गर्मी है ?

आह ! उसे कितना दुख हो रहा है?


(2 ) संबोधन के लिए; जैसे- 

महोदय! मेरी बात सुनिए ।

मोहन! मेरे पास आओ ।


(६) निर्देशक (–) – वाक्यांशों तथा वाक्यों के बीच में इसका प्रयोग अग्रलिखित स्थितियों में होता है । यह योजक चिह्न(-) से थोड़ा बड़ा होता है ।

(1) किसी उद्धरण या कथन के पहले विराम के स्थान पर, जैसे – 

तुलसीदास जी का कथन है –" राम नाम की महिमा अपार है ।"


(2) किसी संवाद या कथोपकथन या प्रश्न – उत्तर के रूप में प्रत्येक वक्ता के बाद, जैसे –

शिक्षक – भारत की राजधानी कहां है ?


(७) योजक या विभाजक (-) – निम्नलिखित स्थानों पर योजक या विभाजक  चिह्णों का प्रयोग किया जाता है –

(1) सामाजिक पदों, पुनरुक्त औरयुग्म शब्दों के मध्य; जैसे –

भारत -रत्न, सुख- दुख, तन- मन, देश-विदेश, कभी-कभी आदि ।


(2)'' मध्य' की अर्थ में; जैसे – 

अंगद – रावण संवाद, भीष्म – परशुराम युद्ध ।


(८)अवतरण या उद्धरण चिन्ह – इसके दो रूप हैं । दुहरा("............"), तथा इकहरा('........')

(1 ) दुहरे अवतरण चिह्न(".........") का प्रयोग –  लेखक या वक्ता की कथन को यथावत उद्धृत करने में इसका प्रयोग किया जाता है, जैसे – नेताजीसुभाष चंद्र बोस ने कहा है" तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा ।" इसमें बोलने और लिखने में दो बातों का महत्व सबसे अधिक होता है पहला अर्थ का और दूसरा भाव का ।

(2) इकहरे अवतरण चिन्ह('...........') का प्रयोग – इसका प्रयोग वाक्य में प्रयुक्त कवि या लेखक का उपनाम, पाठों का शीर्षक, पुस्तक, समाचार- पत्र - पत्रिकाओं, आदि का नाम लिखने में होता है ।

(क) सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' का 'परिमल ग्रंथ' ।

(ख ) पहला अध्याय पढ़ो, जिसका शीर्षक है 'बात'।

(ग)' रामायण' धार्मिक पुस्तक है ।


(९) कोष्ठक ( ) – कोष्ठक का प्रयोग निम्नलिखित स्थितियों में किया जाता है –

(1) क्रम सूचक अंकों या अक्षरों के साथ; जैसे –

दिशाएं चार होती हैं –

(1) पूर्व,                           (2) पश्चिम,

(3) उत्तर,                         (4) दक्षिण    ।

(2) कभी-कभी वाक्य के प्रभाव से भिन्न अथवा व्याख्यात्मक शब्दों को कोष्ठक में रखा जा सकता है, जैसे –

 भरत(दशरथ के पुत्र) बड़े तपस्वी थे ।


(१०) विवरण चिन्ह(: –) – किसी विषय अथवा बातों को समझाने के लिए अथवा निर्देश देने के लिए विवरण चिह्न  का प्रयोग किया जाता है; जैसे – संज्ञा के तीन प्रमुख भेद हैं –

(1) व्यक्ति वाचक,                (2) जाति वाचक,

(3) भाववाचक ।

इसकी जगह प्रायः डैश (–) से काम चला लिया जाता है ।

(11) हंस पद( ्र) – जब लिखने में भूल से कोई शब्द या पद बन्ध छू़ट जाता है तो उसे दिखाने के लिए यह चिह्न लगाकर पंक्ति के ऊपर लिख देते हैं; जैसे –

सुरेश बहुत ही अच्छा लड़का है । यह यहाँ आ जाएगा ।

           इस चिह्न को त्रुटि बोधक भी कहते हैं ।

सुधी पाठकों ! यदि उपरोक्त जानकारी उपयोगी हो तो इसे शेयर करें ताकि हिन्दी भाषा ज्ञान को समृद्ध एवं विकसित किया जा सके। 


                              

                                                                                              सादर  




    






 

    



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